कुड़मी आंदोलन: रेल टेका पटरियों पर ठप जनजीवन, पहचान और आरक्षण की बड़ी लड़ाई

रेल पटरियों पर कुड़मी समाज का प्रदर्शन

झारखंड, पश्चिम बंगाल और उड़ीसा में शनिवार सुबह अचानक ट्रेनें थम गईं। पटरियों पर भीड़, हाथों में झंडे और गूंजते नारे – वजह थी कुड़मी समाज का रेल रोको आंदोलन। उनकी सबसे बड़ी मांग है – अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा और कुड़माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करना

ट्रेनों की रफ्तार थमी

धनबाद मंडल से लेकर टाटानगर तक रेल परिचालन पूरी तरह प्रभावित हुआ।

·         धनबाद-सासाराम इंटरसिटी, हटिया-खड़कपुर पैसेंजर और हटिया-वर्धमान मेमो जैसी कई ट्रेनें रद्द करनी पड़ीं।

·         पटना-रांची जनशताब्दी और वंदे भारत जैसी प्रीमियम ट्रेनें बीच रास्ते में रोक दी गईं।

·         जम्मू-तवी कोलकाता एक्सप्रेस और पूर्वा एक्सप्रेस जैसे बड़े रूट की ट्रेनें डायवर्ट की गईं।

स्टेशन पर अफरातफरी मच गई। किसी यात्री को शादी में जाना था, किसी को नौकरी के इंटरव्यू के लिए निकलना था और कोई इलाज करानेलेकिन सब फंस गए। सड़कें भी खाली नहीं रहीं। कुड़मी समाज ने कई जगह हाईवे जाम कर दिए, जिससे वाहनों की लंबी कतारें लग गईं।

प्रशासन की सख्ती

संवेदनशील स्टेशन MURI  पर भारी पुलिस बल तैनात रहा।

1.       आरपीएफ अलर्ट पर रही।

2.       धारा 144 लागू कर दी गई।

3.       ड्रोन से निगरानी रखी गई।

4.       कई यात्रियों को बीच रास्ते से DE.

5.       बोर्ड कर बसों से वापस भेजा गया।

प्रशासन चाहता था कि आंदोलन शांतिपूर्ण रहे, लेकिन आम जनता को भारी दिक्कत झेलनी पड़ी।

कुड़मी समाज की मांगें

आंदोलनकारियों ने साफ कहा –

  1. हमें एसटी का दर्जा वापस दो।

  2. कुड़माली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करो।

  3. जल-जंगल-जमीन पर हमारा अधिकार मान्यता दो।

उनका आरोप है कि 1931 से 1950 के बीच कुड़मियों को एसटी सूची से हटा दिया गया और ओबीसी में डाल दिया गया। जबकि उनका कहना है कि उनकी परंपराएं और जीवनशैली पूरी तरह आदिवासी जैसी हैं।

कुड़मी नेताओं का कहना है –

“हम प्रकृति की पूजा करते हैं, कर्मा और सरहुल जैसे त्योहार मनाते हैं। असली आदिवासी अगर कोई है तो हम ही हैं। सरकार ने हमारा हक छीना है और जब तक वह हमें एसटी दर्जा नहीं देगी, आंदोलन जारी रहेगा।”

आदिवासी संगठनों का विरोध

हालांकि इस मांग का विरोध भी है। झारखंड और बंगाल के कई आदिवासी संगठन कहते हैं कि कुड़मी समाज आदिवासी नहीं है। अगर उन्हें एसटी दर्जा मिला तो आदिवासियों का आरक्षण बंट जाएगा।

संयुक्त आदिवासी संगठन ने रांची में धरना देकर चेतावनी दी –

“अगर सरकार ने कुड़मियों को एसटी में शामिल किया तो आदिवासी समाज भी राज्यव्यापी आंदोलन करेगा।”

राजनीति का गणित

यह मामला अब सिर्फ पहचान तक सीमित नहीं है।

  • झारखंड, बंगाल और उड़ीसा में कुड़मी और आदिवासी – दोनों ही बड़े वोट बैंक हैं।

  • आने वाले 2024 लोकसभा और 2025-26 विधानसभा चुनाव में इस मुद्दे का सीधा असर पड़ेगा।

  • राजनीतिक दल वादे करते हैं लेकिन ठोस फैसला नहीं ले पा रहे।

बड़ी तस्वीर

  • एक तरफ कुड़मी समाज है, जो दशकों से एसटी दर्जे की मांग कर रहा है।

  • दूसरी तरफ आदिवासी संगठन हैं, जो इसे अपने हक पर हमला मानते हैं।

  • बीच में सरकार है, जो वादा तो करती है लेकिन हल नहीं निकाल पाती।

रेल रोको आंदोलन ने साफ कर दिया है कि अब इस मुद्दे को टालना आसान नहीं। आम जनता इसकी सबसे बड़ी कीमत चुका रही है।

एक ओर आंदोलनकारी अपनी पहचान की लड़ाई लड़ रहे हैं, दूसरी ओर आम लोग राहत के इंतजार में हैं। सवाल यह है कि सरकार कब और कैसे इसका समाधान निकालेगी? तब तक क्या जनता इसी तरह परेशानी झेलती रहेगी?



Post a Comment (0)
Previous Post Next Post