पंचायत सीजन 4 रिव्यू: राजनीति और चुनावी घमासान के बीच कहानी ने खोया दम

 

पंचायत सीजन 4 की समीक्षा: क्या राजनीति ने इस सीजन की कहानी को पीछे छोड़ दिया?

TVF की लोकप्रिय वेब सीरीज़पंचायतने अपने पहले तीन सीजन में गांव की सादगी, लोगों के जज़्बात और हास्य से भरपूर कहानी से दर्शकों का दिल जीत लिया था। जितेंद्र कुमार द्वारा निभाया गया 'सचिव जी' का किरदार, नीना गुप्ता की मुखिया जी और रघुवीर यादव की सरलता ने इसे एक पारिवारिक और ज़मीन से जुड़ी सीरीज़ बना दिया था। लेकिन सीजन 4 में कुछ बदला-बदला सा नजर आता है।

इस बार पंचायत की कहानी में राजनीति और चुनावी माहौल ने गहरी जगह बना ली है, जिससे मूल कहानी और उसके इमोशनल कनेक्शन पर असर पड़ा है।

TVF की लोकप्रिय वेब सीरीज़पंचायतने अपने पहले तीन सीजन में गांव की सादगी, लोगों के जज़्बात और हास्य से भरपूर कहानी से दर्शकों का दिल जीत लिया था। जितेंद्र कुमार द्वारा निभाया गया 'सचिव जी' का किरदार, नीना गुप्ता की मुखिया जी और रघुवीर यादव की सरलता ने इसे एक पारिवारिक और ज़मीन से जुड़ी सीरीज़ बना दिया था। लेकिन सीजन 4 में कुछ बदला-बदला सा नजर आता है।

कहानी की दिशा:

पिछले सीजन के अंत में जिस तरह से गांव में राजनीतिक खींचतान की शुरुआत हुई थी, उसी को सीजन 4 में और गहराई से दिखाया गया है। सचिव अभिषेक त्रिपाठी (जितेंद्र कुमार) को इस बार केवल सरकारी फॉर्म भरवाने या शिकायत सुनने से ज़्यादा बड़े मुद्दों से जूझते देखा गया हैजैसे कि पंच चुनाव, सत्ता संघर्ष, और नेताओं की चालाकी।

हालांकि यह बदलाव कहानी में गंभीरता और गहराई लाता है।

👨💼 अभिनय की बात करें तो...

नीना गुप्ता (मुखिया जी) और रघुवीर यादव हमेशा की तरह शानदार हैं। जितेंद्र कुमार ने भी इस बार एक गंभीर, जिम्मेदार और परेशान सचिव का किरदार पूरी ईमानदारी से निभाया है। उनके चेहरे की झुंझलाहट और आंखों में सच्चाई दर्शकों को किरदार से जोड़ती है।

 

🧠 राजनीति का असर:

सीजन 4 में राजनीति, सत्ता और षड्यंत्र ने कहानी को जकड़ लिया है। एक ओर जहां यह विषय भारतीय ग्रामीण परिदृश्य का रियलिस्टिक पहलू दिखाता है।

📽 निर्देशन और प्रस्तुति:

निर्देशक दीपक कुमार मिश्रा ने कोशिश की है कि पंचायत को एक नया, परिपक्व रूप दिया जाए। कैमरा वर्क और लोकेशन इस बार भी बढ़िया हैंगांव की गलियां, खेत, चौपाल सब ऑथेंटिक लगे।

 

🧾 निष्कर्ष :

पंचायत सीजन 4 एक नये रास्ते पर निकलती हैजहां गांव के लोगों की मासूम दुनिया से हटकर अब वो चुनाव, गुटबाज़ी और राजनीतिक चालों की तरफ मुड़ जाती है। यह बदलाव कुछ दर्शकों को अच्छा लगेगा, खासकर जो गंभीर विषय पसंद करते हैं, लेकिन जो लोगपंचायतको उसकी सादगी और रिश्तों के लिए पसंद करते थे, उन्हें यह सीजन थोड़ा कमजोर लग सकता 


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